देखा जाये तो लोकतंत्र की हत्या बंगाल में रोज की बात हो गई है। पुलिस ने मुर्शिदाबाद ज़िले के जियागंज में रहने वाले पाल परिवार के तीनों सदस्यों के ख़ून में लथपथ शव मंगलवार दोपहर को बरामद किए थे। उनके शरीर पर धारदार हथियार से हमले का निशान था।
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद ज़िले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े स्कूल शिक्षक, उनकी गर्भवती पत्नी और आठ साल के पुत्र की हत्या पर अब बंगाल का माहौल गरमाने लगा है। बीजेपी और संघ के नेताओं ने जहां इस हत्या से बंगाल में क़ानून-व्यवस्था की स्थिति के लिए ममता बनर्जी सरकार को कटघरे में खड़ा किया है। वहीं इस घटना से क्षेत्र के निवासी भी काफ़ी आतंकित हैं। विजयादशमी को कुछ अज्ञात लोगों ने स्कूल शिक्षक बंधु प्रकाश पाल (35), उनकी पत्नी ब्यूटी पाल (28) और केवल आठ वर्ष के पुत्र अंगन पाल की धारदार हथियारों से हत्या कर दी थी। ये हत्या चाहे जिस कारण से की हो, किन्तु यह मानवता की हत्या है, एक तरफ जहां आठ वर्ष का नादान बालक था वहीं दूसरी तरफ पाल की पत्नी गर्भवती थीं।
ऐसा कोई कारण नहीं हो सकता जो ऐसे मासूम परिवार की इतनी नृशंस हत्या का कारण बन सके। निश्चित ही मारने वाले पिशाच, चलते फिरते राक्षस हैं, जिन्हें शीघ्र से शीघ्र खत्म करना जरूरी है। इस मामले के विभिन्न पहलुओं की जांच कर रही पुलिस को अब तक हत्यारों के बारे में कोई सुराग नहीं मिला है। पुलिस से मामले का यदि हल नहीं होता दिखाई दे तो केंद्र को इस मामले की संपूर्ण जांच सीबीआई को देनी चाहिए। क्योंकि एक शिक्षक वर्ग के सभ्य परिवार की इस प्रकार हत्या कोई मामूली बात नहीं। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि बन्धु प्रकाश बहुत समय से धार्मिक आयोजनों से जड़े हुए थे, धार्मिक आयोजन में आना जाना निरन्तर जारी था, फिर भी सभी पहलुओं पर जांच होना अभी शेष है। राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी इस मुद्दे पर राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगी है, क्योंकि इस प्रकार के प्रकरण विरले ही होते हैं जो मानवता को शर्मसार कर देते हैं। बंगाल प्रशासन हिंदुओं की निरन्तर होती हत्याओं को रोकने में नाकाम सिद्ध हुआ है। चाहे उसके कुछ भी कारण रहे हों, अपराधियों में पुलिस का कोई खौफ नजर नहीं आता, जो खौफ हम उत्तर प्रदेश में देखते हैं जहां हिस्ट्रीशीटर हाथ जोड़े पुलिस के सामने खड़े दिखाई देते हैं।
इस घटना के विरोध में बीजेपी और आरएसएस ने गुरुवार को क्षेत्र में एक बड़ी विरोध यात्रा भी निकाली। संपूर्ण बंगाल सहित पूरे देश का हिन्दू समाज इस हत्या से आहत हुआ है, संविधान के मौलिक अधिकार का हनन हुआ है, मानवाधिकार संगठनों को इस मसले पर बड़े स्तर पर आंदोलन व विरोध करने की आवश्यकता थी, जो अभी कहीं भी दिखाई नहीं दे रही। शिक्षकों के स्थानीय संगठन ने भी हत्यारों को शीघ्र गिरफ्तार नहीं किए जाने की स्थिति में आंदोलन की चेतावनी दी है, उनके साथी शिक्षक के पूरे परिवार को समाप्त किया गया, यह बात छोटी बिल्कुल नहीं है, यह आम प्रकरण नहीं है, बहुत बड़ा षड्यंत्र है, बंगाल में हिन्दू को आतंकित करके बंगाल में वही होगा जो ये असामाजिक तत्व चाहेंगे, यह सन्देश इस प्रकरण के द्वारा दिया गया।
देखा जाये तो लोकतंत्र की हत्या बंगाल में रोज की बात हो गई है। पुलिस ने मुर्शिदाबाद ज़िले के जियागंज में रहने वाले पाल परिवार के तीनों सदस्यों के ख़ून में लथपथ शव मंगलवार दोपहर को बरामद किए थे। उनके शरीर पर धारदार हथियार से हमले का निशान था। लेकिन पुलिस के मुताबिक़ पुत्र का गला भी घोंटा गया था। आप सोच भी नहीं सकते कि एक आठ वर्ष के बालक को गला घोंट कर मारना, यह कितना वीभत्स है ! कोई भी मानवीय व्यक्ति या चोर ऐसा कर्म नहीं करेगा, यह निश्चित ही बदला लेने की भावना से प्रेरित कृत्य है। स्थानीय लोगों के अनुसार प्रकाश को उस दिन सुबह 11 बजे बाज़ार से लौटते हुए देखा गया था। लेकिन एक घंटे के भीतर ही घर के भीतर तीनों सदस्यों की हत्या कर दी गई। अर्थात् दिन दहाड़े इस हत्या को अंजाम दिया गया। ऐसे कई सबूत हैं जिन पर काम करने की आवश्यकता है, किन्तु बंगाल पुलिस की मंशा निष्पक्ष जांच की दिखाई नहीं देती। पुलिस का अनुमान है कि हत्यारा पाल परिवार का परिचित था। उसने पहले तीनों को कोई नशीली चीज़ पिला दी। उसके बाद उनकी हत्या कर दी गई। यह बात पीएम रिपोर्ट में सामने आ जायेगी कि हत्या से पहले नशा दिया गया था या नहीं। यदि ऐसा पाया जाता है तो निश्चित ही परिवार के लोग हत्यारे को जानते होंगे।
बंधु प्रकाश के रिश्तेदार राजेश घोष बताते हैं, "मेरे घर के एक सदस्य ने दोपहर पौने बारह बजे बंधु प्रकाश और उनके पुत्र से मोबाइल पर बात की थी, शायद तब हत्यारे उसके घर में ही मौजूद थे। यदि मोबाइल लोकेशन या अन्य किसी तकनीक का उपयोग, आसपास लगे सीसीटीवी, परिवार, दुकानदार आदि से सघनता से पूछताछ की जाए तो सत्य बाहर आने में अधिक समय नहीं लगेगा।" क्या बंधु प्रकाश की हत्या उसके संघ परिवार से रिश्तों के चलते हुई है? पुलिस ने बिना जांच के इस संभावना से मना कर दिया।
बीजेपी और संघ का आरोप है कि तृणमूल कांग्रेस के शासन काल में अपराधी खुलेआम निडर होकर घूम रहे हैं, यह सत्य प्रतीत भी होता है दिन दहाड़े हुई यह नृशंस हत्या इसका प्रमाण है। पुलिस की नाकामी और अपराधियों के बुलंद हौंसले सामान्य जीवन को जकड़े हुए हैं, सभ्य समाज बर्बर तरीके से कुचला जा रहा है उसकी आह सुनने वाला कोई नहीं। पाल परिवार की हत्या इसी का नतीजा है। लालबाग के सब-डिवीजनल पुलिस अधिकारी बरुण वैद्या कहते हैं, "इस मामले की जांच की जा रही है, लेकिन अब तक हत्या के मक़सद का सुराग नहीं मिल सका है। हमने पाल के परिजनों और पड़ोसियों से बात की है।" वैद्या बताते हैं कि पाल के घर के भीतर कई सामान बिखरे पड़े थे, इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि हत्यारों के साथ उनकी हाथापाई हुई हो।
फ़िलहाल पुलिस प्रकाश पाल के मोबाइल की कॉल लिस्ट निकाल कर जांच कर रही है, ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि पाल परिवार के हत्यारे उनसे पहले से परिचित थे। इस हत्याकांड से पड़ोसी भी सदमे में हैं। प्रकाश के एक पड़ोसी विपुल सरदार बताते हैं, "यह परिवार बेहद सभ्य और शिक्षित था। उसका आज तक किसी पड़ोसी से कोई विवाद नहीं हुआ था।" इस मामले से हमारे सामने कई प्रश्न आ खड़े हुए हैं, क्या बंगाल में असामाजिक तत्व कानून व्यवस्था पर हावी हैं ? क्या हिन्दू को बंगाल में न्याय मिलने में परेशानी होती है ? क्या किसी राजनैतिक पार्टी के नियंत्रण के कारण पुलिस ठीक से काम नहीं कर रही ? क्यों केवल हिन्दू समाज की लाशों की गिनती बढ़ती जा रही है ? क्या बात-बात पर हिन्दू आयोजनों पर प्रतिबंध लगाने वाली सरकार केवल अपने वोट बैंक को साधने का कार्य कर रही है ? क्या भारत का लोकतंत्र आज भी ऐसा करने की छूट देता है ? एक दंगे के कारण नरेंद्र मोदी को 10 साल तक परेशान करने वाले जांच आयोग व अदालतें बंगाल में राजनीतिक हत्याओं के जिम्मेदारों को कटघरे में क्यों खड़ा नहीं करतीं ? जांच एजेंसियां बंगाल में होती नृशंस हत्याओं के आधार को क्यों नहीं खोज पा रहीं ? ऐसे कई प्रश्न आक्रोशित जलनिधि की तरह मानव मन को कचोट रहे हैं।
-मंगलेश सोनी