कमिश्नरेट क्षेत्र में आपका स्वागत है; यहां पुलिस केस दर्ज करती है, पैरवी करती है ...फैसला भी खुद सुनाती है


जयपुर (संजीव शर्मा). जयपुर व जोधपुर में जनवरी 2011 में कमिश्नरेट प्रणाली लागू की गई थी। अन्य व्यवस्थाएं बदलने के साथ ही उसी समय से कमिश्नरेट में एसीपी स्तर के अधिकारी को राज्य सरकार ने सीआरपीसी की धारा 20 के तहत कार्यपालक मजिस्ट्रेट की शक्तियां भी दे दीं।


यूं तो ये व्यवस्था लगभग हर उस शहर में लागू है, जहां पुलिस कमिश्नर प्रणाली है। फिर भी इस व्यवस्था में पुलिस के हाथ में ही केस दर्ज करने, सुनवाई करने और फैसला सुनाने का अधिकार देने पर सवाल उठना लाजिमी है। इस व्यवस्था के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका विचाराधीन है, उसमें राजस्थान सरकार भी पार्टी है। मगर अब तक इस प्रणाली को बदलने पर सरकार की ओर से कोई विचार नहीं किया गया। 



शांतिभंग में पाबंद करने से लेकर आमजन के कार्य में बाधा डालने पर गिरफ्तारी तक कई मामलों में अब जयपुर व जोधपुर में स्थिति ऐसी है कि एसएचओ ही बतौर परिवादी केस दर्ज करता है और एडिशनल एसपी स्तर का अधिकारी फैसला सुनाता है। यही नहीं, शिकायत दर्ज करने वाले, बयान लेने वाले, फैसला लिखने वाले रीडर, बाबू व नकल देने वालों सहित अन्य कर्मचारी भी पुलिसकर्मी ही हैं। सुनवाई भी कोर्ट की डायस पर नहीं पुलिस अधिकारी अपने चेंबर में ही करते हैं। अिभयोजन की ओर से बहस करने या बयान दर्ज कराने के लिए कोई भी लोक अभियोजक नियुक्त नहीं है। अधिकतर केसों में कोर्ट का स्टाफ ही बयान दर्ज करवा देता है। जरूरत पड़ने पर सेशन कोर्ट से लोक अभियोजक को बुलाया जाता है।


सीआरपीसी का सेक्शन 20
इसके तहत राज्य सरकार किसी जिले या मेट्रोपॉलिटन क्षेत्र में अपनी इच्छानुसार एक या अधिक व्यक्तियों को कार्यपालक मजिस्ट्रेट की शक्ति दे सकती है। इसी सेक्शन के तहत कमिश्नरेट क्षेत्र में ये शक्ति एसीपी रैंक के अधिकारी को दी गई है। 


...और असर क्या 
लोगों को जानकारी ही नहीं होती कि पाबंद किए जाने के मामले में भी वे अपना पक्ष रख सकते हैं, पैरवी कर सकते हैं। यदि उनका पक्ष तार्किक हो तो पाबंद नहीं किया जा सकता। मगर पुिलस अधिकारी अपने स्तर पर ही फैसले ले लेते हैं। 


20 से ज्यादा धाराओं में दर्ज केसों का निपटारा करने का अधिकार है कार्यपालक मजिस्ट्रेट को



  • धारा 107 से 124, 133, 134,135, 144, 144 ए और 151 की धाराओं से जुड़े केसों में सुनवाई करने का और फैसला करने का अधिकार कार्यपालक मजिस्ट्रेट के रूप में एसीपी स्तर के अधिकारी को दिया गया है। वह कमिश्नरेट में ही न्यायालय चलाता है।

  • इनमें से ज्यादातर धाराएं शांतिभंग या पब्लिक न्यूसेंस रोकने से जुड़ी हैं। धारा 107, 116 व 109 समेत कई अन्य धाराओं में तो थाने का एसएचओ ही परिवाद के जरिये केस दर्ज करवाता है। यानी केस दर्ज करवाने वाला भी पुिलस वाला है और सुनवाई करने वाला भी।

  • इन मामलों में जमानत देने या न देने का फैसला पुलिस अधिकारी को ही करना होता है। शांति बनाए रखने के मामले में पाबंद करने के मामलों में भी पुिलस अधिकारी नोटिस भेजता है और पुलिस अधिकारी ही तय करता है कि पाबंद किया जाए या नहीं।


बॉम्बे हाईकोर्ट 2009 में उठा चुका है कार्यपालक मजिस्ट्रेट के अधिकारों के दुरुपयोग पर सवाल



  • कार्यपालक मजिस्ट्रेट की शक्तियों के दुरुपयोग पर बॉम्बे हाईकोर्ट भी सवाल उठा चुका है। 2009 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने दो याचिकाकर्ताओं के पक्ष में फैसला देते हुए माना था कि उन्हें धारा 116 के तहत गिरफ्तार कर पुिलस अधिकारी ने बतौर कार्यपालक मजिस्ट्रेट अधिकारों को दुरुपयोग किया है। 

  • हाईकोर्ट ने कहा था कि पुलिस अधिकारी ने याचिकाकर्ताओं को अपना पक्ष रखने का मौका ही नहीं दिया। उन्हें सीधे मुचलका भरने का आदेश दे दिया, ऐसा न करने पर याचिकाकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।

  • हाईकोर्ट ने कहा था पुिलस अकादमी में अधिकारियों को बतौर कार्यपालक मजिस्ट्रेट मिलने वाले अधिकारों के इस्तेमाल के बारे में पढ़ाया जाना चाहिए, ताकि सीआरपीसी के चैप्टर-8 का गलत इस्तेमाल न हो।


सुप्रीम कोर्ट में 2016 से चल रहा मामला, फैसला आना बाकी



  • सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता अलदानिश रैन ने 2016 में याचिका दायर कर पुलिस अधिकारियों को कार्यपालक मजिस्ट्रेट की शक्तियां देने पर आपत्ति उठाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान समेत सभी राज्यों व केंद्रीय विधि मंत्रालय से इस मामले में पक्ष भी मांगा था। 

  • सभी राज्यों को नोटिस जारी करते हुए चीफ जस्टिस की बेंच ने कहा था कि ये कैसे संभव है कि पुलिस अधिकारी ही केस दर्ज करें और वही मामले में फैसला भी सुनाएं। इस मामले में सभी राज्यों का पक्ष आने के बाद अब जल्द फैसला आने की उम्मीद है।


एक्सपर्ट व्यू : पुलिस को मिले न्यायिक प्रणाली की ट्रेनिंग



  • हाईकोर्ट के आपराधिक मामलों के अधिवक्ता राजेश गोस्वामी का कहना है कि कार्यपालक मजिस्ट्रेट की मौजूदा प्रणाली में सुधार बहुत जरूरी है। इस काम में लगे पुलिस अधिकारी अनुसंधान का काम भी करते हैं। ऐसे में बहुत जरूरी है कि उन्हें सीआरपीसी के प्रावधानों की सही ट्रेनिंग दी जाए।

  • अधिवक्ता सुनीता सत्यार्थी का कहना है कि आम लोगों को भी सीआरपीसी के प्रावधानों की जानकारी नहीं है। इसी वजह से पाबंद होने का विरोध भी नहीं कर पाते हैं। पाबंद करने से पहले पक्षकारों को नोटिस भेजा जाना चाहिए। मगर न तो पुलिस ऐसा कर रही है और ना ही लोग विरोध कर पा रहे हैं।